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‘गीता’ को राष्ट्रीय मत बनाइये

बेशाख्ता, आहा
बेशाख्ता, आहा
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विदेशमंत्री जी ने श्रीमद्भागवतगीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ बनाने की मांग की है | मांग अच्छी है भावनाओं से ओतप्रोत है| सत्ता पक्ष में बैठे लोगों को संतोष है की तथाकथित विकास की छवि लेकर आई सरकार में हिंदुत्व की भावना मरी नहीं है और जो विपक्ष में हैं उन्हें अपनी तथाकथित तुष्टिकरण वाली छवि को चमकाने का मौका हाथ लगा है| एक पक्ष कह रहा है की इससे राष्ट्र का चरित्र द्रढ़ होगा और दूसरा पक्ष कह रहा है की इससे राष्ट्र की सर्वधर्म समभाव वाली छवि को झटका लगेगा|

इस हफ्ते में यात्रा में था तो पास में एक और ‘गीता’ बैठी थी| चर्चा चल पड़ी की गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित  किया जाये या नहीं| जो ‘गीता’ बैठी थी पता नहीं उसके अन्दर से अचानक जाने क्या उठ बैठा, कहने लगी की ‘गीता’ तो पहले से ही राष्ट्रीय है| सरकार उसको राष्ट्रीय घोषित कर देगी तो क्या कुछ खास हो जायेगा| वो तो पहले से ही सार्वजानिक है| पहले तो बात को अनसुना करने का मन हुआ फिर सोचा की अर्जुन ने इतने दिन चुपचाप खड़े रहकर सुना था तो मैं कुछ मिनट नहीं सुन सकता|कहने लगी की द्रोपदी का चीर हरण हुआ था तो भगवान् ने  कुरुक्षेत्र रच दिया था धर्मी अधर्मी सभी की बलि चढवा दी थी| आज ‘गीता’ के तन- मन सबका हरण हो जाता है, जो चाहे उसे बीच सड़क पर, अपने बड़े बड़े फार्म हॉउस में निचोड़कर पढ़ लेते हैं|उसकी भावनाओं, उसके सपनों से सजे एक एक पन्ने को नोंचकर फ़ेंक देते हैं|कुरुक्षेत्र तो छोड़ दीजिये थानाक्षेत्र तय नहीं हो  पाता की कहाँ किसके क्षेत्र में ‘गीता’ फाड़ी गई है| पहले तो उसे फाड़ने वाला कम से कम नाम से दुर्योधन था आज तो नाम से ‘शिव’ है| सुना था मुझे रचने वाले के आराध्य थे शिव| अब मुझे उधेड़ने वाला ही ‘शिव’ है| ये भी पता चला है की वह जहाँ का रहने वाला है मेरे रचयिता वहीँ पैदा हुए थे| मैं सोचने लगा की जो धरा भगवान् कृष्ण की जन्मस्थली है वहां वहां ऐसा  ‘शिव’ पैदा हुआ जिसके कंठ में नहीं मन में विष भरा है | ‘गीता’ आगे बोले जा रही थी| यदि सरकार मुझे राष्ट्रीय बना देगी, उसके बाद कोई मेरा अपमान करेगा तो उस पर राष्ट्र द्रोह का मुकदमा चलेगा, सजा ऐ मौत भी हो सकती है| वो तो अभी भी होनी चाहिए| अपमान तो अब भी हो रहा है ‘गीता’ का, हत्या तो अब भी कर दी जाती है आए दिन कहीं न कहीं| तो फिर इस उधेड़बुन में क्यों उलझ जाती है सरकार और न्याय के मंदिर की मुझे फाड़ने वाला बालिग़ है या नाबालिग| कितने साल की सजा होनी चाहिए| क्या इस तरह से फाड़ा गया है की सजा आए मौत हो सकती है या उम्र कैद से काम चल जायेगा| पहले से ही क्यों तय नहीं है की ऐसे कृत्य के लिए केवल एक ही सजा है,  सजा ऐ मौत| मेरा गंतव्य आने वाला था| बस से उतरते हुए मैं सोच रहा था की इस ‘गीता’ में दर्द, असुरक्षा और आशंकाओं के कितने अध्याय दर्ज हैं| अवसाद मिश्रित आक्रोश के कितने श्लोक लिखे हुए हैं| अफसोस इस बात का था की उस वक्त उस ‘गीता’ के सवालों का जवाब देने के लिए न तो में कृष्ण बन सकता था और ना ही हमेशा के लिए उसकी सुरक्षा का भरोसा देने वाला अर्जुन| घर पहुँचते- पहुँचते तय न कर पाया की उस बस वाली गीता का दर्द कौन समझ सकता है जो किसी की माँ हो सकती है, किसी की बहन, किसी की बेटी और पत्नी भी| सोच रहा था की श्रीमद्भागवत गीता को सरकार राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित कर देगी तो क्या देश के ऐसे ‘शिव’ का चाल चरित्र बदल जायेगा?  क्या देश की अन्य ‘गीता’ का जीवन असुरक्षा और भय से मुक्त हो जायेगा ? जिन मंत्री महोदया ने गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ बनवाने की पहल की है वह स्वयं भी उसी बस वाली ‘गीता’ का प्रतिरूप हैं| वह अपनी सरकार में इस पहल को बढ़ावा देने के आलावा इस बात के भी कोई गंभीर प्रयास करेंगी की देश की अन्य गीता को राष्ट्रीय न बनने दिया जाये| उनकी प्राथमिकता में क्या है गीता को राष्ट्रीय बनवाना या ‘गीता’ को राष्ट्रीय न बनने देना|

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